दरभंगा का अपना ही एक दौर था जब लोग गर्व से कहते थे कि हम दरभंगा के रहने वाले हैं बिहार का एक शानदार शहर जिसकी खबरें अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचती थी 

आखिर क्यों खास था दरभंगा? आखिर वहाँ के राजा के साथ साथ दरभंगावासी भी इतना गर्व क्यों  करते थे दरभंगा शहर पर आज के दरभंगा की हालत देखेंगे तो बिहार के अन्य शहरों जैसा ही दिखता है 

ना वो शानो शौकत, ना वो रखरखाव, ना वो स्थिरता शायद राजाओं का वो दौर सरकार नहीं ला सकती वरना दरभंगा कभी इतना बेबस और लाचार नहीं होता 

शुरुआती दिनों में दरभंगा में तीन रेलवे स्टेशन थी पहला लहरियासराय जो कभी अधिकारियों के लिए था, दूसरा हरा ही स्टेशन जो अभी दरभंगा स्टेशन के नाम से जाना जाता है 

हरा ही स्टेशन आम जनता के लिए था तीसरा था नरगौना टर्मिनल जहाँ से महाराज की पहले सोमवीर चलती थी दरभंगा जो कभी दरभंगा राज़ की राजधानी रही आज के समय में उसकी हालत  पर दयाल हालांकि 

दरभंगा पटना के बाद बिहार का दूसरा सबसे बड़ा मेडिकल हब है बिहार का तीसरा एअरपोर्ट दरभंगा में स्थित है 

पर इस शहर की हालत जस की तस है इस शहर में अभी और क्या क्या बनेगा, इसका प्रोजेक्ट तो है पर यहाँ जो चीजें धरोहर के रूप में है

उन्हें कैसे बचाया जाए, इसका कोई प्रोजेक्ट नहीं है दरभंगा राज़ का महल जिसे हिंदुस्तान का दूसरा लाल किला कहा जाता है, उसका सुध लेने वाला भी कोई नहीं है 

अगर यह ईमेल किसी दूसरे राज्य में होता है तो यहाँ से लाखों रुपये की आमदनी होनी तय थी क्योंकि दिल्ली के लाल किले की हूबहू ये इमारत किसी आठवें अजूबे से कम नहीं है 

ये वो दरभंगा हैं जहाँ वायसराय और लॉर्ड वेलिंग्टन के अलावा पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गाँधी के स्वागत का साक्षी रहा है 

ये जगह मिथिलांचल का दिल कहे जाने वाले दरभंगा जो कभी बिहार का सबसे लोकप्रिय शहर था कि शहर की पहचान सबसे अलग थी इसकी हुकूमत पर सबको नाज था लोग इसकी तारीफ करते नहीं थकते थे 

पर आज क्या है? दरभंगा के पास न सड़कें, न व्यापार, न पैसा न सत्कार एक झटके में ऐसे महान विरासत वाले शहर को मुँह के बल गिरा दिया गया अगर इस शहर को 

इसके इतिहास के मुताबिक भी रखा गया होता तो शायद ये शहर देश के सबसे बेहतरीन शहरों में से एक होता है इस शहर के राजा दे सके सबसे बड़े दानवीरों में से एक थे, 

तभी तो इन्होंने पटना में अपना दरभंगा महल पटना विश्वविद्यालय को दान दे दिया बनारस हिंदू विश्वविद्यालय को उस समय पच्चास, लाख का दान दिया था 

कलकत्ता विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे कई और विश्वविद्यालय को भी आर्थिक सहायता देने वाले  

महाराज के इस शहर पर किसी सरकार ने इसे संवारने की जहमत नहीं उठाई इतनी शानो शौकत रखने वाला यह शहर ऐसी स्थिती में क्यों पहुंचा दिया गया 

इसका जवाब कोई नहीं दे पाएगा आज इस शहर के लोग दूसरे राज्यों में पलायन करने को मजबूर हैं क्योंकि यहाँ रोजगार नहीं है दूसरे राज्यों के लोगों से अपमानित होने को मजबूर हैं  

क्योंकि पेट का बोझ जमीन पर भारी है ये कहानी शायद हर बिहारी की है क्योंकि पूरे बिहार का अतीत स्वर्णिम था और भविष्य सिर्फ अंधकार दिख रहा है