Pillars of Ashoka, अशोक स्तंभ की खोज और इसके National Emblem बनने की पूरी कहानी
अशोक स्तंभ से जुड़ी कॉन्ट्रोवर्सीज के बारे में तो आपने सुनी ही लिया होगा लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि अशोक स्तंभ का इतिहास आखिर क्या है?
अशोक स्तंभ को किसने बनवाया, कैसे इस स्तंभ को खोजा गया? फिर कैसे यह चीन देश का National Emblem और किसने इसे डिजाइन किया और सबसे अहम सवाल कहाँ कहाँ इस चिन्ह का इस्तेमाल नहीं हो सकता अगर आपको भी इन सवालों का जवाब नहीं पता तो चलिए लिए चलते हैं आपको अशोक स्तंभ से जुड़े इतिहास की यात्रा पर
अशोक स्तंभ को भारत के महान सम्राट सम्राट अशोक ने लगभग दो सौ पचास ईसा पूर्व बनवाया था और ऐसा नहीं है कि यह सिर्फ एक अशोक स्तंभ था जो सम्राट अशोक ने बनवाया था उनके द्वारा ऐसे कई स्तंभ बनवाए गए थे जो भारतीय उपमहाद्वीप में फैले उनके राज्य में कई जगह पर लगवाए गए थे खासकर यह स्तंभ बुद्धिस्ट मोनास्ट्री में लगवाए गए और ऐसी जगहों पर जो भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई थी इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अशोक ने इन स्तंभों की रचना धर्म स्तंभ के रूप में करवाई थी
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आज की बात करें तो सम्राट अशोक के साथ स्तंभ ही प्रमुख मिले हैं इनमें से साँची का स्तंभ मेन है लेकिन इन सभी का डिजाइन अलग अलग है सम्राट अशोक के ये स्तंभ बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में पाए गए इनमें से दो स्तंभों को फिरोजशाह तुगलक द्वारा तेरह सौ इक्यावन से तेरह सौ अट्ठासी ईस्वी के बीच दिल्ली में रिलोकेट किया गया
इनमें से एक पिलर आज भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के पास स्थित है, जिसे दिल्ली मेरठ पिलर भी कहा जाता है और एक स्तंभ फिरोजशाह कोटला के पास स्थित है जिसे दिल्ली टोपरा पिलर कहा जाता है हालांकि कहा जाता है कि मुगल काल में भी कई स्तंभों को मुगल शासकों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया अब जिसे अशोक स्तंभ के चीन को भारत के नेशनल एम्ब्लम के तौर पर चुना गया वो है सारनाथ में खोजा गया अशोक स्तंभ, जिसे मार्च उन्नीस सौ पांच में खोजा गया था
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इसकी खोज की कहानी भी काफी दिलचस्प है ब्रिटिशराज पर कई किताबें लिखने वाले मशहूर इतिहासकार चार्ल्स रॉबिन एलन सम्राट अशोक से जुड़ी खोजों पर भी लिख चूके हैं उन्होंने अशोका the सर्च ऑफ इंडिया लास्ट amprav में सारनाथ के अशोक स्तंभ की खोज के बारे में भी बताया है
अपनी इस किताब में वह स् तंभ को खोजने वाले शख्स फ्रेड्रिक ऑस्कर और तेल के बारे में बताते हैं, जो पैदा जर्मनी में हुए थे लेकिन बाद में जर्मन नागरिकता छोड़ भारत आ गए और यहाँ उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता ले ली क्योंकि तब भारत ब्रिटिशर्स के ही आधीन था फ्रेड्रिक की बात करें
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तो उन्होंने पहले रेलवे में बतौर सिविल इंजीनियर की नौकरी की और फिर लोक निर्माण विभाग में ट्रांसफर ले लिया साल उन्नीस सौ तीन में फ्रेड्रिक का तबादला बनारस हो गया जहाँ से सारनाथ की दूरी महज दस किलोमीटर है फ्रेड्रिक के पास आर्किलॉजी को लेकर किसी तरह की कोई डिग्री नहीं थी लेकिन उनकी रुचि पूरा तत्वों की खोज में थी फ्रेड्रिक ने चीनी यात्रियों की किताबों से ये जानकारी हासिल की कि सारनाथ के पास उन्हें कहा खुदाई करनी चाहिए
अशोक स्तंभ की खोज
उन्होंने सारनाथ का एक एरिया चिन्हित किया और उन्हें खुदाई की इजाजत भी दे दी गई सबसे पहले उन्हें उस जगह पर गुप्त काल के मंदिर के सबूत मिले जिसके नीचे अशोक काल का एक ढांचा था इतिहासकार के मुताबिक फ्रेड्रिक को पहले स्तंभ का निचला ढांचा मिला और फिर साल उन्नीस सौ पांच में उन्हें स्तंभ का शीर्षक भी मिल गया जिसपर शेरों की आकृति बनी हुई थी
भारत का पहला म्यूजियम
इस खोज को सदी की महान खोजों में से एक माना जाता है जहाँ स्तंभ मिला था, फ़ौरन ही वहाँ म्यूजियम बनाने के आदेश भी दे दिए गए सारनाथ म्यूजियम भारत का पहला ऑन साइट म्यूजियम है आज भी यह अशोक स्तम्भ वहीं रखा गया है खैर, इस खोज से बयालीस साल बाद भारत आजाद हो गया और उन्नीस सौ सैंतालीस में आज़ादी से ऐन पहले यह सवाल उठा कि भारत का राष्ट्रीय प्रतीक या होना चाहिए ऐसे में बाईस जुलाई उन्नीस सौ सैंतालीस को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा के सामने प्रस्ताव रखा कि देश के झंडे और राष्ट्रीय प्रतीक के लिए एक डिजाइन बनाया जाना चाहिए
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ऐसे में पंडित नेहरू ने सम्राट अशोक के सुनहरे दौर के शासनकाल की बात कही यही नहीं पंडित नेहरू ने सम्राट अशोक के काल को अंतर्राष्ट्रीय रूप से भारत की छवि को बदल देने वाला भी बताया इसके बाद नेहरू के प्रस्ताव पर सभी नेता एकमत हो गए कि देश के पास एक असरदार राष्ट्रीय प्रतीक होना ही चाहिए और यह भी तय था
कि ये प्रतीक अशोक के दौर से ही लिया जाएगा लेकिन जब देश भर के कला स्कूलों के बनाए चित्र इस कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए तब एक आईएएस अफसर बदरुद्दीन तैयबजी की पत्नी सुरैय्या तैयबजी ने अशोक स्तंभ को प्रतीक के तौर पर एक चित्र में उकेरा, जिसे राष्ट्रीय भवन की प्रेस ने कुछ मामूली बदलावों के साथ संविधान सभा के सामने पेश किया और यह प्रतीक सबको पसंद आया लेकिन कागजों दस्तावेज़ों और आपके पासपोर्ट पर जो अशोक स्तंभ आप देखते हैं उसे बनाने का काम प्रख्यात चित्रकार और शांति निकेतन के कला शिक्षक नंदलाल बोस के एक शिष्य दीनानाथ भार्गव ने किया किसी चित्र को उन्होंने संविधान के पहले पन्ने पर भी स्कैच किया था
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दरअसल मौर्य शासनकाल के ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट की ताकत को दिखाते थे जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई भारत सरकार ने छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास को इस प्रतीक को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया था लगे हाथ आपको अशोक स्तंभ से जुड़े कानून के बारे में भी जान लेना चाहिए
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अशोक स्तम्भ का इस्तेमाल सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे हुए व्यक्ति ही कर सकते हैं इसमें भार भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल, न्यायपालिका और सरकारी संस्थाओं के उच्च अधिकारी शामिल हैं
लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी पूर्व अधिकारी या पूर्व मंत्री, पूर्व सांसद या फिर पूर्व विधायक बिना अधिकार के इस राष्ट्रीय चिह्न का यूज़ नहीं कर सकते हैं इस कानून के तहत अगर कोई आम नागरिक इस तरह अशोक स्तम्भ का इस्तेमाल करता है तो उसे दो वर्ष की कैदऔर पांच हज़ार रुपये तक का जुर्माने की सजा हो सकती है