शहर के आज वह पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं या यह कहें कि वह सरकार जिस के दौर में बिहार पूरी तरह से बदनाम और बर्बाद हुआ अन्यथा जिस प्रकार बिहार कभी इतनी ऊंचाई पर था कि यहां हर शहर और हर गांव में कोई न कोई उद्योग जरूर था जिनमें से मुख्य तो हम पांच शहरों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां काम करने
बंगाल उत्तर प्रदेश और नेपाल से लोग आते थे उस दौर में शहरों में 5 से 8000 लोग काम करते थे हर तरफ खुशहाली और तरक्की बिहार का भविष्य उज्जवल पर 90 का दशक जो बिहार की बर्बादी का आज भी गवा है
सरकार ने इन कारखानों और उद्योगों को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नही उठा सकी और आज की सरकार बंद पड़े कारखानों को खुलवा ना सकी जिससे साफ है कि प्रदेश में गरीबी और बदहाली बढ़ती गई और लाचार और मजबूर होकर दूसरे राज्यों में पलायन को जाने लगे तो चलिए दोस्तों बढ़ते हैं और जानते हैं उन सहरो के बारे में जो कभी बिहार के औद्योगिक शहर माने जाते थे
बिहार के वो पाच शहर जो कभी औद्योगिक के केंद्र हुआ करते थे
1.पूर्णिया
पूर्णिया जहां किसानों की तरक्की और युवाओं को रोजगार देने के उद्देश्य से 60 के दशक में दो करोड़ की लागत से बनमनखी चीनी मिल एशिया की सबसे बड़ी चीनी मिल खोली गई थी यह बिहार का पहला सहकारिता मिलता 119 एकड़ में फैली इस मेल में साल 1970 में उत्पादन शुरू हुआ था,
साल 1997 में चीनी मिल बंद हो गई गन्ना पेराई का काम पूरे प्रदेश में लगभग ठप पड़ गया सैकड़ों लोगों का रोजगार खत्म हो गया और यह हाल पूरे बिहार का है लगभग हर चीनी मिल बंद हो चुकी है आपको बता दें कि देश के कुल चीनी उत्पादन का 40% हिस्सा बिहार में होता था,
साल 1933 से लेकर 1940 तक बिहार में लगभग 33 चीनी मिले थे इस दौर में बिहार खूब तरकी पर था इसी दौरान दरभंगा की
- सकरी चीनी मिल
- रायम मिल
- लोहत मिल
- पूर्णिया की बनमनखी मिल
- पूर्वी चंपारण समस्तीपुर की चीनी मिल
सब सरकार के अंडर में आए और साल 1997 से 1998 के दौर में सरकारे इन चीनी मिलो को संभाल न सकी और एक के बाद एक मिले बंद होती चली गयी,
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2.दरभंगा का अशोक पेपर मिल
नंबर दो पर है दरभंगा का अशोक पेपर मिल बिहार के दरभंगा जिले के बाहरी हिसे में में 400 एकड़ की जमीन पर अशोक पेपर मिल बनाया गया इस मेल में बनने वाली पेपर पूरे देश में सबसे बेहतरीन पेपर निर्माण करता था
सैकड़ों लोगों को रोजगार से चलता था इस मिल को दरभंगा के राजा ने 1958 हया घाट विधानसभा के रमेश्वर नगर में स्थापित किया था यह दरभंगा से कुछ दूर स्थित एक क़स्बा है जो बागमती नदी के किनारे बसा है उस वक़त पुरे उतर बिहार में यही सबसे बड़ा उद्योग था
1963 में इस कंपनी की दो यूनिट 1 दरभंगा रामेश्नगर तो दूसरा असम के जोगिहोपा में के रूप में 1970 में सरकार में इसे भी अधिक रहित कर लिया तब बिहार सरकार असम सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम बन गया रहित कर लिया तब बिहार सरकार असम सरकार और केंद्र सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम बन गया तब
आईडीबीआई बैंक इसका मुख्य निवेशक था पर 1982 आते-आते कारखाना बंद हो गया और यह काम करने वाले कामगारों और बिहार की बर्बादी शुरू हुई,
3.नंबर तीन पर है सारण
सारण की फैक्ट्री वो फैक्ट्री थी जहा सुगर फैक्ट्री में प्रयोग किए जाने वाले कलपुर्जे बनाए जाते थे यहां से बनने वाली कलपुर्जे बिहार की 4 कमिसिनियुरो में सप्लाई किए जाते थे तो वही यहां मरोड़ा चीनी मिल जिसकी स्थापना 1950 में हुई थी सक्कर उत्पादन में भारत में इसका दूसरा स्थान था आजादी से कुछ वर्ष पूर्व ब्रिटिश इंडिया
कॉरपोरेशन ने अपने अधीन लिया लेकिन 90 का दशक फैक्ट्री के लिए काल बन कर आया और 1990 में बंद हो गई इसके अलावा देश का सबसे पसंदीदा चॉकलेट मोतेन चॉकलेट कंपनी बंद हो गया चीनी मोतेन सारण औरदिस्तेनोरी की 4 कंपनिया बंद हो गयी
शाम के 4:00 बजते ही जब मिल से छुट्टी का सायरन बसता था तो सड़कों पर चलने की जगह नहीं होती थी इतनी चहल-पहल कि पूछो ही मत लेकिन आज वह बदहाल सड़कें बिहार की बदहाली को आइना दिखा रही ह,
4.डालमियानगर
डालमियानगर लगभग 38 सालो से बंद पड़ा है कभी यहाँ हजारो लोग काम करते थे यहां
- चीनी
- कागज
- डालडा
- वनस्पति तेल
- सीमेंट
- रसायन
पर इतना बड़ा उद्योग का जो अनगिनत मजदूरों का स्वर्ग था 1984 में डालमियानगर समूह के नाम से मशहूर 240 एकड़ क्षेत्र में फैले रोहतास उद्योग समूह का जब चिराग बुझा तो बिहार के उद्योग जगत में अंधेरा छा गया
इतने सारे प्रोडक्ट बनाने वाली अब बंद होने के कगार पर खड़ी थी तो सरकार ने मदद तो दूर इसकी बदहाली का कारण जानना भी जरूरी नहीं समझा जबकि सरकार यह बात अच्छे से जानती थी कि अगर उद्योग बंद हुआ तो बिहार से पलायन तय है पर फिर भी सरकारों ने इस पर कोई एक्शन नहीं लिया नतीजा यह हुआ कि इस समूह के बंद होने से सीधे नौकरी की तलाश में दर-दर भटकने को मजबूर हो गए और हजारों की संख्या में परिवारों ने बिहार से पलायन कर लिया,
5.डुमराव
डुमराव को बिहार का टेक्सटाइल सिटी कहा जाता था यह बक्सर जिले का नगर जहां
- टेक्सटाइल मिल
- जूता फैक्ट्री
- लालटेन फैक्ट्री
- कोल्ड स्टोरेज फैक्ट्री
- और सिंह होरा
का सबसे बड़ा उत्पादक नगर था यहां लगभग 20 हजार के आसपास कामदार काम करते थे या उत्तर प्रदेश और बंगाल के अलावा नेपाल के काम पर भी काम करने आते थे,
उस समय यह शहर खूब फल-फूल रहा था फैक्ट्रियों में सायरन की आवाज से पूरा शहर ही जाता था यहां का निर्मित सिंह होरा की डिमांड सिर्फ बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी था पर नब्बे का दशक जैसे बिहार की खुशियां लेने के लिए ही आया था कहा जाता है कि इन सभी कंपनियों के बंद होने का मुख्य कारण करोड़ों की बिजली बकाया थी क्या सरकार इन बिजली बिलों का भुगतान नहीं कर सकती थी
बिजली भुगतान में कटौती नहीं कर सकती थी जिसे बिहार की कंपनियां बिहार में चलती रहती बिहार के लोग आज दर-दर ना भटकते दूसरे राज्यों में अपमानित ना होते हैं अगर सभी कंपनियां बिहार में चलती तो शायद आज बिहार भी
गुजरात और महाराष्ट्र की तरह संपन्न होता और जाति और धर्म के नाम पर लड़ने वाली जनता को मंत्री ने खूब छला है और आज भी वोट के अपने देश का भला कम लोग ही सोच पाते हैं सब अपनी जाति के नेता जी को जीत दिलाने की कोशिश में लगे रहते हैं इतिहास गवाह है कि धर्म और जाति के नाम पर कोई इतिहास नहीं बदल पाया है
आप के कुछ सवाल FAQ
बिहार में शुगर मिल कितने हैं?
बिहार में कुल अब तक 28 चीनी मिल थे जो इस समय बंद पड़े है
बिहार में पहली चीनी मिल कब स्थापित हुई?
बिहार में पहली चीनी मिल 1958 में दरभंगा में स्थापित हुई थी
क्यों चीनी मिल बिहार में बंद कर दिया?
बिहार में जितने चीनी मिल थे सरकारने अपने अंडर लिया और ये चीनी मिलो को संभाल ना सकी और ये सब चीनी मिल एक के बाद एक बंद होती चली गयी
बिहार का सबसे पुराना चीनी मिल कौन है?
मढौरा की चीनी मिल