भिखारी ठाकुर जी का जीवन परिचय,भिखारी ठाकुर कैसे बने वो भोजपुरी के इतने महान कलाकार
नमस्कार दोस्तों, भोजपुरी इतिहास के ऐसे व्यक्ति का नाम है भिखारी ठाकुर जिनके बारे में आज भी अगर कोई फ़िल्म बनाई जाए तो वो सुपर डुपर हिट हो सकती है सोचिए उनके टोली का एक व्यक्ति जो लोंडा डांस करता था उनको पंचानवे साल की उम्र में पद्मश्री जैसे अवॉर्ड देकर नवाज़ा गया कि आप बहुत अच्छे इंसान के साथ काम करते थे.

दोस्तों उन दिनों भोजपुरी को इतना आगे लेवल तक ले जा चूके थे भिखारी ठाकुर की उस समय के बहुत ही लोकप्रिय प्रोफेसर मनोरंजन प्रसाद सिंह कहते हैं कि ये भोजपुरी के शेक्सपियर है बिहार के एक छोटे से गांव छपरा में अठारह सौ सत्तासी में जन्मे भिखारी ठाकुर आकर भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए इतना इम्पोर्टेन्ट क्यों हैं?
लोग इतना मान सम्मान क्यों करते हैं? और उनको एक बार ही तो एक प्रोफेसर ने कहा था, अंगर हीरा तो आखिर ऐसे शब्दों का प्रयोग उनके लिए क्यों कहा जाता है? आइए एक एक करके आज जानते हैं
भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में जीतने भी पहले के कलाकार हैं वो भिखारी ठाकुर जी की बहुत ज्यादा इज्जत करते हैं, लेकिन इन दिनों आये कुछ असली कलाकार कहिए या फिर बिना अस्तित्व वाले कलाकार कहिये जो भिखारी ठाकुर को एक मजाक समझ लिए हैं,
उनके रिऐलिटी को जानते ही नहीं है कि व्यक्ति क्या किया है भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए इसलिए वो ऐसे स्टेटमेंट देने में भी पीछे नहीं हटते
भिखारी ठाकुर कौन थे ?
कुछ लोगों को तो पता ही नहीं है कि भिखारी ठाकुर कौन है? लेकिन भोजपुरी का वो गाना कर चूके हैं इसलिए उनको बताना बहुत जरूरी है इनकी पूरी जीवन गाथा भिखारी ठाकुर के जीवन की कहानी की शुरुआत होती है, जब वो अपनी जवानी के दिनों में चले जाते हैं बंगाल, बंगाल वो कमाने जाते हैं, जो उपार्जन करने जाते हैं लेकिन उनको वहाँ पे मन नहीं लगता है उनको मन लगता है नाच गाना बजाना नाटक में और फिर वहाँ से वह बंगाल से वापस चले जाते है
तीस साल की उम्र में वह बंगाल से वापस आ जाते हैं और एक मंडली का गठन करते हैं मंडली के गठन में कुछ लोगों को जोड़ते हैं ताकि सब लोग मिलके नाटक कर सके उनके साथ काम करने वाले लोग बहुत ईमानदार होते हैं और भिखारी ठाकुर जी की खूब साथ देते है और फिर वो अपने दिल इसकी शुरुआत करते हैं उस समय वो रोड पे अपना नाटक करते हैं, चौराहे पर करते हैं, नुक्कड़ पे करते हैं और धीरे धीरे धीरे धीरे करके उनका लेवल बढ़ता जाता है और वह स्टेज तक अपने नाटकीय प्रोग्राम को करने लगते हैं
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उन दिनों उनका एक नाटक बड़ा फेमस होता है जिसका नाम होता है परदेसिया वो उसमें अपने दर्द को बताएं होते हैं कि किस तरीके से एक माँ का लाडला बेटा, एक पत्नी का प्यारा संपत्ति, एक बाप का बेटा और एक बहुत ही खुशमिजाज लड़का पैसों के लिए अपने देश को छोड़कर दूसरे देश चला जाता है
और वहाँ दर दर की ठोकरें खाता है और जैसे ही इस नाटक को भिखारी ठाकुर ने स्टेज पे किया, लोगों ने उसको बहुत ज्यादा प्रोत्साहन दिया लोगों ने बहुत ज्यादा उसकी वैल्यू को समझा लोग बहुत ज्यादा रिलेट कर पाएं और वहाँ से भिखारी ठाकुर की गाड़ी चल पड़ी और वो बहुत ज्यादा लोकप्रिय होने लगे
इसके बाद उन्होंने बहुत सारे नाटक किए जैसे कलयुगी प्रेम, भाई भाई में विद्रोह और ज्यादातर हो सामाजिक चीजों पे ही नाटक करते थे जिससे वह बहुत ज्यादा लोगों के दिल में घर करते जा रहे हैं दोस्तों कम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी भिखारी ठाकुर में इतना ज्यादा टैलेंट था कि क्या ही बताना वो कहानी लिखते थे
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गाना लिखते थे, नाटक लिखते थे यही नहीं वो गाना भी गाते थे, डांस भी करते थे, एक्टिंग भी करते थे, पूरे नाटक को होस्ट भी करते थे और एक इंसान में इतना ज्यादा टैलेंट लोग देखकर हैरान हो जाते थे कि इतना कम पढ़ा लिखा व्यक्ति आखिर इतनी ज्यादा कामों को कैसे कर लेता है?
और जब आप इन की जीवनी पढ़ेगा तो आप हैरान हो जाएंगे इनके बारे मैं जानके कि इंसान एक जो एकदम दुर्बल सा दिखने वाला व्यक्ति जो ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं है फिर भी वो पूरे कामों को कर लेता है वो भी अकेले लेकिन इतना ही नहीं उनके अंदर कुछ ऐसी बातें थीं जो उनको और ज्यादा महान बनाती थी और आज तक आप उनका नाम लेते हैं और बड़े बड़े सुपरस्टार उनको मार्गदर्शन मानते हैं खैर, वो क्या करते थे वो हम आपको बताते हैं जब उनका नाम जिसे साल में जिंस समय में पिकप था,
बहुत ज्यादा लोग उनको पसंद करते थे, उस समय जातिवाद भी बहुत ज्यादा हमारे बिहार में बिहार क्या पूरे हिंदुस्तान में जातिवाद था और बहुत ज्यादा कुप्रथा थी हमारा देश में उस समय गुलाम हो चुका था और उस समय भिखारी ठाकुर अपने नाटक के माध्यम से अपने रचनात्मक के माध्यम से लोगों को बताते थे कि समाज में सामाजिक लोगों को रहना चाहिए सब लोग वो एक समान रहना चाहिए, जातिवाद नहीं करना चाहिए
और ऐसे ऐसे नाटक के लोग वाकई प्रभावित हो जाते थे उन सब चीजों से और लोग बाल वाह जैसे चीज़ो को रोक देते थे या फिर सरकार जो था अंग्रेजी सरकार? उसके खिलाफ़ विद्रोह करने में लोगों को एकजुट करने में बहुत ज्यादा भिखारी ठाकुर ने अपना योगदान दिया था जिसके वजह से आज भी उनका नाम उसी स्वर्ण अक्षरों में लिया जाता है
जैसे उस समय लिया जाता था और इन सब वजहों से उनके फैन लाखों करोड़ों में हो गए थे उस समय जीस समय ना रेडिओ था, ना पेपर था और ना ही कुछ ऐसा ज़माना है की बस यूट्यूब पर देखे और फेमस हो गए
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इतने काम में व्यस्त होने के बाद भी भिखारी ठाकुर ने उनतीस किताब लिख दिया भोजपुरी में जिसकी वजह से वो बिहार के और राष्ट्र के संवाहक बने और बिहार में लोंडा डांस जो किसी किसी के लिए आज के समय में शर्म की बात होती है भिखारी ठाकुर ने इसकी पहली बार शुरुआत की थी
बिहार में जो की आज के समय में ये विलुप्थ होते जा रहा है लोगों के सुख, कोल्ड ईगो की वजह से लेकिन हम आपको बता दें जो आज पचानवे साल की उम्र में आ चूके हैं और उन्होंने बहुत ज्यादालोंडा डांस किया है उनके लिए उन लोन डैन्स के लिए उनके कलाकृति के लिए उनको पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया जो कि देश का सबसे मान सम्मान वाला अवॉर्ड में से एक है,
जो कि भिखारी ठाकुर के एक मंडली के लोगों को मिला जो उसमें लौंडा डांस करते थे और इन्हीं सब कारनामों की वजह से उस वक्त के बहुत ही फेमस प्रोफेसर मनोरंजन प्रसाद सिंह ने इनको कहा था भोजपुरी के शेक्सपियर यानी कि भोजपुरी के जन्मदाता सेक्सपियर जो है
वो इंग्लिश के जन्मदाता हैं उसी तरीके से भोजपुरी के शेक्सपियर जो है उनको भिखारी ठाकुर को कहा गया था और इसलिए आज भी आप इनका नाम किसी किसी के मुँह से सुनते होंगे कि भोजपुरी के शेक्सपियर थे
बिखारी ठाकुर इतना ही नहीं, डॉक्टर उदय नारायण तिवारी ने उन समय में इनको कहा था कि भोजपुरी के अनगढ़ हीरा है मतलब इनके जैसा हीरा मिलना भोजपुरी के लिए सौभाग्य की बात है इनको कहीं गड्ढा नहीं जा सकता है और हीरो के साथ और फिर लगातार भोजपुरी के मान सम्मान को बढ़ाते बढ़ाते तिरासी साल की उम्र में वह इस दुनिया को छोड़ के चले गए
भिखारी ठाकुर जी का मृत्यु कब होई थी ?
लेकिन जाते जाते भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री को भोजपुरी को इस मुकाम तक लेकर आ चूके थे की यहाँ पे एक बहुत ही ठोस मॉडल बन चुकी थी और भोजपुरी को सुनने और समझने वाले लोग बन चूके थे और उस समय तक हजारों कलाकार भी पैदा ले चूके थे और फिर लगातार भोजपुरी का मान सम्मान बढ़ाते बढ़ाते तिरासी साल की उम्र में उनका देहांत हो गया और वह इस दुनिया को छोड़ के चले गए
लेकिन छोड़ के गए तो भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री का एक बहुत अच्छा मुकाम और भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री और भोजपुरी को एक ट्रैक पर लाकर रख दी है उस समय तक भोजपुरी को अपनी पहचान मिल चुकी थी और अगर वो नहीं होते तो भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री आज जितनी बड़ी आपको दिख रही है उतनी बड़ी नहीं होती और भोजपुरी भाषा भी इतनी ज्यादा लोकप्रिय नहीं होती जितनी आज के समय मेंहै
और इन सब कारणों की वजह से भिखारी ठाकुर को सब लोग बहुत ज्यादा सम्मान करते है और जीतने नए नए लोग आ रहे हैं भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में उनको भी सम्मान करना चाहिए क्योंकि ये भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री के धरोहर है और अगर कोई इंसान की इज्जत नहीं करता है तो भोजपुरी की तौहीन करता है दोस्तों मैं उम्मीद है आपको समझ आया होगा और आप सही चीजों को समझे होंगे
भिखारी ठाकुर का जन्म कहाँ हुआ था?
बिहार के एक छोटे से गांव छपरा में उनका जन्म हुआ
भिखारी ठाकुर को कौन सा पुरस्कार मिला था?
उन्होंने बहुत ज्यादालोंडा डांस किया है उनके लिए उन लोंडा डैन्स के लिए उनके कलाकृति के लिए उनको पद्मश्री अवॉर्ड दिया गया जो कि देश का सबसे मान सम्मान वाला अवॉर्ड में से एक है,
भिखारी ठाकुर का जन्म कब हुआ था?
18 December 1887
भिखारी ठाकुर जी का मृत्यु कब होई थी ?
तिरासी साल की उम्र में उनका देहांत हो गया और वह इस दुनिया को छोड़ के चले गए